दोस्तों यह एक सच्ची घटना है। यह घटना है सन् 1962 की भारत और चीन के बीच लड़ाई की। चीन ने अरुणाचल प्रदेश में कब्जा करने के उद्देश्य से हमला कर दिया। चीनी सैनिकों द्वारा की गई इस हमले से भारतीय सैनिकों को काफी नुकसान हुआ और भारतीय सैनिकों की स्थिति कमजोर होने लगी तब वहां तैनात गढ़वाली यूनिट की चौथी बटालियन सेना को वापस बुला लिया गया। वापस बुलाए जाने के बाद भी लांस नायक त्रिलोकी सिंह, गोपाल और राइफलमैन जसवंत सिंह रावत वापस नहीं लौटना चाहते थे इसलिए सब मिलकर चीनी सैनिकों का डटकर सामना करने लगे।
जब जसवंत सिंह रावत अपने साथियों के साथ चीनी सैनिकों से लड़ रहे थे उस वक्त जसवंत सिंह रावत की उम्र महज 21 वर्ष थी। जसवंत सिंह में देश प्रेम का जज़्बा इतना ज्यादा था कि सिर्फ 17 वर्ष की उम्र में वह सेना में भर्ती होने चले गए थे परंतु उस समय उम्र कम होने के कारण उसे सेना में भर्ती नहीं लिया गया। 19 अगस्त 1960 को जसवंत सिंह को राइफलमैन के रूप में सेना में शामिल किया गया। 14 सितंबर 1961 को उनकी ट्रेनिंग पूरी हुई। ट्रेनिंग पूरी होने के एक वर्ष बाद ही अर्थात 17 नवंबर 1962 को जसवंत सिंह को चीन के विरुद्ध यह लड़ाई लड़नी पड़ी। बाकी सिपाहियों के शहीद हो जाने के बाद भी जसवंत सिंह चीनी सेना से डटकर मुकाबला करते रहे और चीनी सैनिकों के ईट का जवाब पत्थर से देने लगे।
नूरारंग की इस लड़ाई में चीनी सेना मीडियम मशीन गन (MMG) से ज़ोरदार फायरिंग कर रही थी, जिससे गढ़वाल राइफल्स के जवान मुश्किल में थे तब ये तीनों भारी गोलीबारी से बचते हुए चीनी सेना के बंकर के करीब जा पहुंचे और दुश्मन सेना के कई सैनिकों को मारते हुए उनसे उनकी MMG छीन ली तब कुछ चीनी सैनिको ने आकर उनका हमला कर दिया और जसवंत सिंह का एक साथी वह शहीद हो गए और जसवंत सिंह चिनिओ का जवाब देते रहे और MMG को भारतीय बंकर तक पहुंचाने का काम गोपाल सिंह ने किया।
चीनी सैनिकों से लड़ते हुए लांस नायक त्रिलोकी सिंह और गोपाल भी शहीद हो गए। उस समय अकेले जसवंत सिंह ही बच गए थे और सामने थी चीन की विशाल सेना। तब उनकी मदद नूरा नाम की लड़की ने की थी। माना जाता है की नूरा, जसवंत सिंह को पसंद करती थी इसीलिए वहा उनका साथ देने गयी थी और उसे भी चीनी सेना ने मार दिया था। मुझे ये तो नहीं पता की सच में कोई नूरा थी भी या नहीं पर आज भी उस इलाके में कभी कभी उन दोनों की इस हिम्मतभरी प्रेमकहानी के चर्चे सुनाई पड़ते है।
जसवंत सिंह अकेले ही 10 हज़ार फीट ऊंची अपनी पोस्ट पर डटे हुए थे तब भी ऐसे विकट परिस्थितियों में भी जसवंत सिंह हार नहीं माने और लगातार 72 घंटों तक बिना कुछ खाए पिए भूखे पेट चीनी सैनिकों से अकेले लड़ते रहे। उस समय जसवंत सिंह अलग.अलग बंकरों में जाकर फायरिंग कर रहे थे जिससे चीनी सैनिकों को लग रहा था कि सभी बंकरो में बहुत सारे सैनिक है परंतु असल में सिर्फ जसवंत सिंह अकेले सैनिक थे। इस तरह जसवंत सिंह ने असाधारण बुद्धि और साहस का प्रयोग करके चीनी सैनिकों को दुविधा में डाल रखा था। जसवंत सिंह ने अकेले लगभग 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया और जब अंत में उसकी सारी गोलियां खत्म हो गई थी थी और वो पूरी तरह घायल भी हो चुके थे तो चीनी सैनिकों ने उन्हें बंदी बनाकर मार डाला लेकिन तब तक भारतीय सेना की और टुकड़ियां युद्धस्थल पर पहुंच गईं और चीनी सेना को रोक लिया। इस बहादुरी के लिए जसवंत सिह को महावीर चक्र और त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह को वीर चक्र दिया गया।


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Thanks bhai
ReplyDeleteitni sari imp info with all photos sirf tectasks par hi mil skti hai...��
ReplyDeleteBhai ye to pata nai tha!
ReplyDeleteThank for writting of this topic
Awesome bhai
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