• जानिये फांसी देने के पूर्व कैदी के कान में जल्लाद क्या कहता है... ईनाम...

    नमस्कार दोस्तो आज हम आपको ले जायेंगे एक ऐसे रहस्य की ओर जिसको आप भी जानना चाहेंगे, दोंस्तो अक्सर आपने फिल्मो मे देखा होगा या कहीं से सुना होगा की किसी अपराधी को फंासी पर चढाने के पूर्व जल्लाद कैदी के कानो मे कुछ कहता है। तो दोस्तो आज हम आपको इस रहस्य से वाकिफ कराना चाहेंगे । नको ईनाम भी दिया जाता है।

  • माउण्ट एवरेस्ट फतह करने वाली दुनिया की पहली ट्विन्स

    दोस्तो आज हम बात करेंगे माउण्ट एवरेस्ट फतह करने वाली दुनिया की पहली ट्विन्स के बारे में। दोस्तो माउण्ट एवरेस्ट फतह करने वाली दुनिया की पहली ट्विन्स लडकियाॅ थी।

  • जानिए दुनिया में जन्म लेने वाला पहेला इंसान कौन था...

    नमस्कार दोस्तो, हर कोई जानना चाहता है की दुनिया में जन्म लेने वाला पहेला इंसान तो आइये आज हम जानते है हमारे अस्तित्व के बारे मे, आइये जानते है हमारे इतिहास को । इसके अलावा आज हम आपको बतायेंगे उस महिला के बारे मे जिसने दुनिया पर पहली बार बच्चा पैदा किया।

जानिए विश्व के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय के बारे में...

इंग्लैंड में स्थित कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय हमेशा से ही विश्वप्रसिद्ध रहा है। देश-विदेश से अनेकों लोग वहां अध्ययन करने की लालसा रखते हैं लेकिन कुछ लोगों का ही यह सपना पूरा हो पाता है। दोस्तों आज हम बात करेंगे विश्व की सबसे प्राचीन प्रथम विश्वविद्यालय के बारे में।

    विश्व का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय तक्षशिला है जो कि भारत में ईसा के 700 साल पहले गंधार राज्य के तक्षशिला में स्थापित किया गया था। वर्तमान में यह स्थान भारत विभाजन के कारण पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में है। वर्तमान में यह विश्वविद्यालय खंडहर बन चुका है। आइए दोस्तों जानते हैं भारत की इस प्राचीन विश्वविद्यालय तक्षशिला के बारे में विस्तार से कुछ मजेदार जानकारी।

    तक्षशिला विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए एक परीक्षा पास करनी होती थी। यह परीक्षा बहुत ही कठिन होता था बहुत कम विद्यार्थी ही इस परीक्षा में सफल हो पाते थे। प्राचीन भारत में तक्षशिला में 60 से भी ज्यादा पाठ्यक्रमों की पढ़ाई होती थी जिनमें से कुछ पाठ्यक्रम निम्नानुसार है -

  • वेद
  • आयुर्वेद
  • संगीत
  • नृत्य 
  • राजनीति 
  • दर्शन 
  • सर्जरी 
  • गणित 
  • विज्ञान 
  • युद्ध कला 
  • तीरंदाजी कला 
  • खगोल 
  • अर्थशास्त्र 
  • चिकित्सा 
  • व्याकरण 
  • शस्त्र संचालन 
  • मनोविज्ञान 
  • कृषि 
  • योग विज्ञान
आदि.......
   
       तक्षशिला में देश विदेशों से आए 10,000 से भी अधिक विद्यार्थियों ने अध्ययन किया। 500 ईसा पूर्व जब दुनिया में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केंद्र था। अनेक असाध्य रोगों का इलाज यहां आसानी से एवं जड़ी-बूटियों की सहायता से किया जाता था।

    आचार्य चाणक्य जिसको विष्णुगुप्त और कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन संस्कृत भाषाविद् और व्याकरणविद् पणिनीः एवं चरक संहिता के रचयिता चरक तथा इसके अलावा और भी बहुत सारे विद्वान तक्षशिला विश्वविद्यालय के ही विद्यार्थी थे।

   चाणक्य तक्षशिला विश्वविद्यालय के स्नातक और अध्यापक थे। चाणक्य के शिष्यों में से चंद्रगुप्त मौर्य सर्वाधिक प्रसिद्ध हुआ। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु के साथ मिलकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना किया।
   
‌‌   सातवीं सदी ईसा पूर्व से पांचवी सदी तक तक्षशिला विश्वविद्यालय बहुत अच्छी तरह से चल रहा था लेकिन छठवीं सदी के शुरुआत तक विदेशी हमलावरों ने इस प्राचीन विश्वविद्यालय को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
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एक ऐसी रहस्यमयी गुफा, जो पिछले 55 सालों से पहले हमसे छिपी हुई थी...

दोस्तों रोमानिया की साउदर्न ईस्ट पर एक ऐसी रहस्यमयी गुफा है जो पिछले 55 सालों से पहले हमसे छिपी हुई थी। यह जगह जितनी रहस्यमयी है उतनी खतरनाक भी है। दोस्तों हम बात कर रहे हैं रोमानिया की मोविल केव (Movile cave) के बारे में जो कि अन्य गुफाओं की तुलना में बहुत ही ज्यादा अद्भुत और रहस्यमयी है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।

    पावर प्लांट के कुछ वर्कर्स इस जगह पर कुछ टेस्ट कर रहे थे तभी अनजाने में एक रास्ता खुल गया जिसके अंदर का वातावरण बाहरी दुनिया से बिल्कुल ही अलग और रहस्यमयी था। इस महीन दरवाजे और कुछ गुफाओं के समूह को पार करने पर एक ऐसी जगह मिली जहां पर एक झील है जो की पूरी तरह से सल्फ्यूरिक एसिड से भरी हुई है एवं यहां सड़े हुए कीड़े मकोड़ों की अजीब सी बदबू भी आती है। इस जगह का वातावरण बहुत ही ज्यादा जहरीली है जिसमें हाइड्रोजन सल्फाइड की मात्रा बहुत अधिक है और हमारे वातावरण में पाए जाने वाले कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में इस जगह पर 100 गुना ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद है।

    किसी ने भी इस जगह पर जीवन की कल्पना नहीं की थी परंतु यहां पर 33 प्रकार के कीड़े-मकोड़े की प्रजाति पाई गई जो कि सिर्फ इसी जगह पर पाई जाती है। यह 33 प्रकार के कीड़े-मकोड़े पूरी पृथ्वी को छोड़कर सिर्फ इसी जगह पर पाई जाती हैं। यह कीड़े मकोड़े ऐसी जहरीली वातावरण में जीवित रहने के लिए अपने आप को अनुकूलित कर चुके हैं इस कारण से यह जीव सिर्फ इसी जगह पर पाए जाते हैं। दोस्तों जैसा कि हमें पता है कि जीवन के लिए सूर्य प्रकाश जरूरी है हैरान कर देने वाली बात यह है कि यहां पर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता फिर भी यह कीड़े मकोड़े जहां पर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
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जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर की कुछ गुप्त और खतरनाक हथियार...

जर्मनी के तानाशाह और "नाजी पार्टी" के नेता एडोल्फ हिटलर के बारे में तो आपने सुना ही होगा। 1 सितंबर सन् 1939 को हिटलर ने पोलैंड पर हमला कर दिया। चूंकि फ्रांस और ब्रिटेन ने पोलैंड को सुरक्षा देने का वादा किया था इस वजह से फ्रांस और ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी और इस तरह से द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ हुआ। चूंकि यह युद्ध हिटलर द्वारा पोलैंड पर हमला करने से प्रारंभ हुआ इस कारण हिटलर को ही द्वितीय विश्व युद्ध का सर्वाधिक जिम्मेदार माना जाता है। जैसा कि दोस्तों आपने सुना होगा हिटलर की सेना बहुत शक्तिशाली थी और उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बहुत ही घातक हथियारों का उपयोग किया। इन खतरनाक हथियारों ने मानव जाति का भरपूर विनाश किया। परंतु दोस्तों हिटलर के पास कुछ ऐसे हथियार भी थे जो कि बेहद खतरनाक से भी अधिक खतरनाक थे। उनमें से कुछ हथियार तो पूरी तरह से बनकर तैयार भी नहीं हुए थे। अगर वे हथियार तैयार हो जाते तो शायद ऐसा संभव था कि द्वितीय विश्वयुद्ध का परिणाम हमें कुछ और ही देखने को मिलता। आइए दोस्तों जानते हैं हिटलर के कुछ खतरनाक और गुप्त हथियारों के बारे में।

1. STG 44 :- यह दुनिया की सबसे पहली असाॅर्ट रायफल थी। इस हथियार को इतना ज्यादा पसंद किया गया कि इसकी नकल करके ही AK-47 और M16 जैसी बहुत सारी बंदूके बनाई गई जो आज भी पूरी दुनिया में सबसे मशहूर और अच्छी बंदूके है। इस बंदूक की एक और विशेषता यह थी कि इस पर जरूरत पड़ने पर एक मुड़ी हुई नली (बैरल) भी लगाई जा सकती थी। यह बैरल 4 तरह की होती थी जो 30 डिग्री, 45 डिग्री, 60 डिग्री और 90 डिग्री तक मुड़ी हुई होती थी। इन बैरल की वजह से सैनिक छिपकर  भी वार कर सकते थे। इस बंदूक का उपयोग विश्वयुद्ध के अंतिम कुछ महीनों में ही किया गया।

2. The Sun Gun :-  हिटलर के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी योजना बनाई थी कि वह पृथ्वी के ऊपर 1.5 किमी डायामीटर का एक आईना भेजेंगे जो सूर्य की किरणों को परावर्तित कर उसे एक निर्धारित जगह पर फोकस (केंद्रित) करके उसे जला सके। यह योजना इतनी खतरनाक थी कि इससे दुश्मनों के किसी भी शहर को जलाया जा सकता था एवं समुद्र के किसी भाग को उबाला जा सकता था। हालांकि इस योजना को सफल बनाने में हिटलर के नाजी वैज्ञानिक असमर्थ रही।

3. Schwerer Gustav :-  1350 टन वजनी यह तोप मनव इतिहास में उपयोग में लाया गया सबसे बड़ा हथियार था। इस तोप को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए रेल ट्रैक का इस्तेमाल करना पड़ता था। यह तोप 7 टन वजनी गोला दाग सकता था जो कि 25 मील की दूरी तक हमला करने की क्षमता रखता था।

4. The V3 Super Gun :- लंदन शहर को खात्मा करने के लिए हिटलर ने इस बंदूक का निर्माण करवाया था। यह बंदूक प्रति घंटे 300 राउंड फायर कर सकती थी। इस गन की मारक क्षमता भी बहुत ज्यादा अच्छी थी। इतिहासकारों के अनुसार यह हथियार हिटलर की सेना का सबसे शक्तिशाली हथियार था। जब इस हथियार को लंदन की तरफ ले जाया जा रहा था तभी अंग्रेजों की सेना ने रास्ते में ही आक्रमण कर दिया और इस हथियार को नष्ट कर दिया।

5. Sonic Canon :- नाजी वैज्ञानिक 1940 के दशक में सोनिक कैनन जैसे खतरनाक हथियार को बनाने में लगे थे। इस हथियार मे मीथेन और ऑक्सीजन की अभिक्रिया से निकलने वाली धमाके की आवाज को बड़ी-बड़ी यंत्रों द्वारा इंफ्रासाऊंड में परिवर्तित कर दुश्मन की तरफ छोड़ा जाता था। इस हथियार की तेज धमाके की आवाज इतनी खतरनाक थी कि अगर 50 मीटर दूर खड़े किसी व्यक्ति पर यह ध्वनि छोड़ दी जाए तो महज 30 मिनट मे ही उस व्यक्ति की दर्दनाक मौत हो सकती थी।

6. X-Ray Gun :- नाजी जर्मनी वैज्ञानिक X-Ray गन बनाने की ओर अग्रसर थी। जर्मनी के वैज्ञानिक रेडियोएक्टिव लेजर राइफल बनाने के बहुत करीब पहुंच चुके थे जिसे बाकी देश बनाने में असफल रहे थे। यह रेडियोएक्टिव लेजर राइफल बिना किसी धमाके की आवाज के दुश्मनों को मार गिराने की क्षमता रखता था।

     तो दोस्तों यह थी जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर की कुछ गुप्त और खतरनाक हथियार । इनमें कुछ ऐसे हथियार भी शामिल है जिनका निर्माण समय पर नहीं हो पाया था अगर इन हथियारों का निर्माण समय पर हो जाता तो शायद ऐसा संभव था कि विश्वयुद्ध का परिणाम हमें कुछ और ही देखने को मिलता। दोस्तों अगर यह आर्टिकल पसंद आया है तो अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिए और हमारे फेसबुक पेज को लाइक कीजिए ऐसे ही चटपटी, मजेदार और रहस्यमयी आर्टिकल्स के लिए.........

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पाकिस्तानी सेना में मेजर बना था भारत का ये असली 'जासूस'

दोस्तों जब देशभक्ति की बात आती है तो हर व्यक्ति ओज और जोश से भर जाता है। दोस्तों आज 26 जनवरी है, हमारे देश के बहुत वीर हमारे देश  आज़ादी के लिए अपनी जान की क़ुरबांनी दिए थे और आजादी के बाद आज भी हमारे वीर जवान देश की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते है। दोस्तों, आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे देश भक्त जासूस के बारे में जिसके बारे में आपने शायद ही सुना होगा। दोस्तों हम बात कर रहे हैं रियल हीरो रविंद्र कौशिक के बारे में जिसने अपने देश के लिए सब कुछ त्याग कर अकेले पाकिस्तान चला गया जासूसी करने के लिए। आइए जानते हैं इस रियल हीरो की कुछ सुनी - अनसुनी रोचक रहस्यमयी बातें।

      श्रीगंगानगर में हिंदू पंडित के घर पैदा हुआ रविंद्र कौशिक नाटक (अभिनय) करने का बहुत शौकीन था।
रविंद्र कौशिक को रूप बदलकर बहरूपिया बनने में महारथ हासिल थी। रुप बदलने की इसकी कला अद्भुत थी इसकी इस कला को भेद पाना बेहद ही मुश्किल था।

     रविंद्र को अभिनय करने के लिए लखनऊ बुलाया गया था वहां वह देश प्रेम का अभिनय करते हुए चीन में पकड़े गए भारतीय सैनिकों की दर्द भरी दास्तां का सटीक अभिनय कर रहे थे। रविंद्र का दर्द भरा अभिनय लोगों को बिल्कुल सच लग रहा था। इन्हीं लोगों की भीड़ में RAW का एक अधिकारी भी बैठा था जो कि रविंद्र की अभिनय से बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ और रविंद्र को अपने लिए काम करने को कहा और रविंद्र ने इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया। रविंद्र को बहरूपिया बनकर मुसलमान की एक्टिंग करने को कहा गया था।

     रविंद्र को एक गुप्त स्थान पर ले जाया गया और वहां उसकी 2 साल तक ट्रेनिंग चली इस दौरान रविंद्र में यह भी देखा गया कि उनमें देश प्रेम और धर्म के प्रति कितनी आस्था है। यह इसलिए आवश्यक था ताकि अगर कोई एजेंट मुस्लिम देश में पकड़ा भी गया तो वह किस हद तक मुंह खोल सकता है लेकिन रविंद्र RAW अधिकारियों की सभी परीक्षा में पास हुआ।

     आखिर वह दिन आ गया जब रविंद्र को जासूसी के लिए पाकिस्तान जाना था। RAW के अधिकारियों ने रविंद्र को जासूस बनकर पाकिस्तान जाने को कहा और यह भी कहा गया कि अगर तुम वहां किसी कारणवश मर भी गए तो यह तुम्हारी जिम्मेदारी होगी और अगर पकड़े गए तो हम तुम्हें नहीं पहचानेंगे। रविंद्र ने अधिकारियों की बात पर हामी भरते हुए कहा मुझे खुद पर पूर्ण विश्वास है कोई भी मेरे रूप बदलने की कला को नहीं पहचान पाएगा। यह सब सुनकर RAW के सभी अधिकारी खुश हो गए।

     रविंद्र को मुसलमान के रूप में ढालने के लिए उसका खतना कराया गया, दिन में पांच बार नमाज पढ़ने की ट्रेनिंग दी गई, उर्दू भाषा सिखायी गयी और कुछ दिन मुसलमानों की संगति में रखा गया‌

      रविंद्र ने अपने घर में यह बताते हुए विदा ले लिया कि उसकी दुबई में नौकरी लग गई है और अब वह वही रहेगा और घर में पैसे भेज दिया करेगा।

      भारतीय सीमा पार कराकर रविंद्र को पाकिस्तान भेज दिया गया जहां सबसे पहले वह अपना शिनाख्ती कार्ड बनाया और कराची के एक महाविद्यालय में एलएलबी की उपाधि प्राप्त कर ली। रविंद्र कौशिक पाकिस्तान में नबी अहमद शाकिर के नाम से जाना गया। रविंद्र कौशिक उर्फ़ नबी अहमद शाकिर पाकिस्तानी सेना में भर्ती हो गया। कहा जाता है कि रविंद्र कौशिक पाकिस्तानी सेना में मेजर के पद तक पहुंच गए थे। किसी को कोई शक ना हो इसलिए रविंद्र ने अपने सीनियर अधिकारी की बेटी फातिमा से शादी कर ली। और पाकिस्तान में ही एक मुसलमानी लड़की के साथ अपना घर बसा लिया।

      रविंद्र कौशिक उर्फ़ नबी अहमद शाकिर पाकिस्तान की बहुत सारी खुफिया जानकारी RAW को भेजता गया और सन् 1971 के युद्ध जीतने में भी भारत के लिए अहम योगदान दिया। सब कुछ सही तरीके से चल रहा था फिर कांग्रेस की सरकार ने यह सोचा कि रविंद्र की सहायता के लिए एक और जासूस पाकिस्तान भेजना चाहिए। रविंद्र ने इसके लिए साफ साफ मना कर दिया। परंतु सरकार के दबाव के चलते रविंद्र ने मजबूरी में एक और सहयोगी के लिए हामी भर दी। फिर एक और RAW एजेंट को रविंद्र के सहयोग के लिए पाकिस्तान भेजा गया जो कि कांग्रेस सरकार की सबसे बड़ी गलती साबित हुई। यह नया जासूस भारत की सीमा पार कर पाकिस्तान के एक होटल में चाय पीने रुक गया। वहीं पर कुछ पाकिस्तानी सैनिक भी बैठे थे। उन सैनिकों को इस  जासूस पर शक हो गया और वह जासूस पकड़ा गया। वह जासूस डर कर पाकिस्तानी सैनिको को सब कुछ सच - सच बता दिया। उसने कहा "मैं भारत से आया हूं अपने दोस्त से मिलने"। इस तरह नए जासूस ने RAW एजेंट के बारे में सभी पोल खोल दी और रविंद्र कौशिक पकड़ा गया। इस नए जासूस की मूर्खता के कारण रविंद्र पकड़ा गया और रविंद्र को जेल में डाल दिया गया। रविंद्र कौशिक पर अनेक प्रकार के जुर्म किए गए। रविंद्र को फांसी की सजा सुनाई गई परंतु वहां की मानवाधिकार संस्थाओं ने इस फांसी को उम्रकैद में तब्दील करवा दी।

     सजा के पहले रविंद्र को 12 दिन तक गुप्त बंद कमरे में बिना भोजन दिए रखा गया था। उसे सिर्फ पानी ही दिया जाता था वह भी सिर्फ उतना ही पानी जिससे कि वह जिंदा रह सके। 12 दिन तक इस हालत में रहने से रविंद्र को हृदय की बीमारी हो गई थी जिसका पाकिस्तान की जेल ने इलाज भी नहीं करवाया। इस बीच रविंद्र ने अपने घर में खत लिखकर सब कुछ सच बता दिया। खत में रविंद्र ने इच्छा जाहिर की थी कि वह भारत की भूमि पर मरना चाहता है। घरवालों ने नेताओं से मिलकर रविंद्र को छुड़ाने की कोशिश की परंतु नेताओं ने साफ साफ मना कर दिया और कहा कि हम कोई मदद नहीं कर सकते हमने पहले ही एग्रीमेंट पर साइन किया है कि पकड़े जाने पर हम कोई सहायता नहीं करेंगे।

     अंत में सन् 2001 में रविंद्र कौशिक ने पाकिस्तान की जेल में अपना प्राण त्याग दिया। भारत सरकार ने रविंद्र का शव लेने से भी इंकार कर दिया और रविंद्र की शव को पाकिस्तान ने कचरे के ढेर के साथ जला दिया।

     रविंद्र कौशिक को "ब्लैक टाइगर" की उपाधि से नवाजा गया था। दोस्तों यह थी रियल हीरो रविंद्र कौशिक की रोचक बातें। दोस्तों अगर यह आर्टिकल आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिए और हमारे फेसबुक पेज को लाइक कीजिए ऐसे ही चटपटी रहस्यमयी और मजेदार आर्टिकल्स के लिए......


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दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान सहारा नहीं, ये है...


हम सब यही मानते हैं कि अफ्रीका महाद्वीप का सहारा रेगिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान है। परंतु दोस्तों अंटार्कटिक दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान है जो कि चारों ओर से पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ बर्फ से ढका हुआ है। इस जगह को दुनिया का आखिरी कोना भी कहा जाता है। इस जगह पर  बहुत कम बारिश होती है इस वजह से इसे ठंडा रेगिस्तान भी कहा जाता है। हाल ही में इस महाद्वीप के बारे में कुछ अजीबो-गरीब रहस्यो के बारे में पता चला है जिसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे।


     अंटार्कटिका में बहुत ज्यादा ठंड होने के कारण कोई भी इंसान यहां स्थायी रूप से नहीं रह सकता। हालांकि यहां पर कुछ देशों के रिसर्च स्टेशन है जहां लोग खोज के लिए आते जाते रहते हैं। पृथ्वी का सबसे शुष्क स्थान भी इसी अंटार्कटिका महाद्वीप में स्थित है जिसे ड्राइ वैली के नाम से जाना जाता है। अंटार्कटिका में सन् 1962 से एक  न्यूक्लियर पावर स्टेशन भी है। अंटार्कटिका में एक फायर स्टेशन भी है, आपको बता दें कि अंटार्कटिका में आग लगने का कोई सवाल ही नहीं उठता। अंटार्कटिका का 99% हिस्सा बर्फ से ढका हुआ है।

     कहा जाता है कि करीब 53 लाख साल पहले अंटार्कटिका बहुत गर्म स्थान हुआ करता था और इसके किनारों पर खजूर का पेड़ आसानी से देखा जा सकता था। उस समय तापमान लगभग 20°C से ज्यादा ही होता था। सन् 1820 में अंटार्कटिका को सबसे पहली बार देखा गया। अंटार्कटिका पर कोई भी अपना अधिकार नहीं जमा सकता। सन् 1959 में 12 देशों ने एक संधि के तहत इस जगह को शांतिपूर्ण अनुसंधान कार्य के लिए चुना।

     पूरी धरती में मौजूद पानी का लगभग 70% हिस्सा अंटार्कटिका में ही पाया जाता है। अंटार्कटिका महाद्वीप के नीचे लगभग 300 से भी ज्यादा ठंडे पानी की झीले पायी जाती है। अंटार्कटिका में एक सक्रिय ज्वालामुखी भी है। धरती का अब तक का सबसे न्यूनतम तापमान -88.3 सेल्सियस इसी जगह पर मापा गया है। यहां पर 320 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भी तेज हवाएं चलती है जो कि बर्फ की एक बड़ी एवं मोटी हिस्से को भी उड़ा ले जाती है।

अंटार्कटिका का सबसे बड़ा रहस्य :-
            अंटार्कटिका के लिविंगस्टन नामक द्वीप में सन् 1918 में रिसर्चर्स को एक महिला की खोपड़ी और पैर की एक हड्डी मिली जो कि 175 साल पुरानी थी। रिसर्च में यह बताया गया कि यह खोपड़ी और हड्डी किसी 21 वर्षीय चीली महिला की है जिसकी मृत्यु सन् 1819 से 1825 के बीच में हुई थी। कहा जाता है कि अंटार्कटिका में पाया गया यह अब तक का सबसे पुराना इंसानी अवशेष है। सबसे बड़ा रहस्य यह है कि जिस जगह पर इस महिला का अवशेष पाया गया है उस जगह से चीली करीब 1000 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर है। अब सवाल यह बनता है कि आखिर वह महिला उस जगह पर कैसे पहुंची जबकि उस समय वहां पर नाव एवं डोंगियो के सहारे भी जाना असंभव था, यह आज तक रहस्य ही बना हुआ है।

     अंटार्कटिका के बर्फ के 3.5 किलोमीटर नीचे झील भी मौजूद है। अंटार्कटिका के बर्फ के 1 किलोमीटर नीचे वैज्ञानिकों को सूक्ष्मजीव भी मिले हैं। इन सुक्ष्मजीवो में कुछ विशेष प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र भी मिले हैं जो धरती पर अन्य जगहों में नहीं पाए जाते हैं। अजीब बात यह है कि इन जीवो को न तो सूर्य प्रकाश मिल रही है और ना ही ताजी हवा मिलती है फिर भी ये सुक्ष्मजीव लंबे समय से जीवित रह रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इन सूक्ष्मजीवो का विकास मीथेन एवं अमोनिया की वजह से हो रहा है।

    अंटार्कटिका में इंसानों का रहना लगभग असंभव था ऐसी विषम परिस्थिति वाली अंटार्कटिका में भी क्रूर तानाशाह शासक हिटलर का नाजी बेस मौजूद है। द्वितीय विश्वयुद्ध के शुरुआती समय में हिटलर ने कुछ गुप्त मिशन के तहत सैनिकों को रवाना कर दिया। हालांकि यह गुप्त मिशन कुछ महीनों तक ही चला और 5 फरवरी सन् 1939 को नाजी सेना अंटार्कटिका से वापस आ गयी।

     अंटार्कटिका में कुछ ऐसी बर्फ सीड्स की खोज की गई है जिनसे जब हवा टकराती है तो किसी महिला के रोने की आवाज सुनाई देती है। हालांकि इस आवाज को हम मनुष्य सुन या महसूस नहीं कर सकते परंतु कुछ विशेष मशीनों की मदद से इस आवाज को आसानी से सुना जा सकता है।
      
    दोस्तों अगर यह आर्टिकल आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिए और हमारे फेसबुक पेज को लाइक कीजिए ऐसे ही चटपटी मजेदार और रहस्यमयी जानकारी के लिए.........


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